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020 _a818957096
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082 _aस 1205
100 _aसिंह, विजयपाल
245 _aमु्क्तिबोध अंधेरे में एक विश्लेषण एंव चाँद का मुँह टेढ़ा है ब्रह्मराक्षस
250 _aआवृ. 2
260 _aइलाहाबाद
_bजयभारती प्रकाशन
_c2005
300 _aपृ. 156
650 _aहिन्दी समीक्षा
999 _c15717
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942 _CGB